यहूदी और ईसाई विश्वास में कबला का स्थान | कबला, कबाला या कबलाह (Yahoodee aur eesaee vishvaas mein kabala ka sthaan | Kabala, kabaala ya kabalaah)

यहूदी और ईसाई विश्वास में कबला का स्थान | कबला, कबाला या कबलाह (Yahoodee aur eesaee vishvaas mein kabala ka sthaan | Kabala, kabaala ya kabalaah)

यहूदी और ईसाई विश्वास में कबला का स्थान | कबला, कबाला या कबलाह (Yahoodee aur eesaee vishvaas mein kabala ka sthaan | Kabala, kabaala ya kabalaah) : दन्तकथा, भ्रम, मिथक और मिथ्या प्रस्तुति की परत से ढका हुआ है, क्योंकि आज तक प्रामाणिक कबला विज्ञान हज़ारों वर्षों से  गुप्त रखा गया है !

यहूदी और ईसाई विश्वास में कबला का स्थान | कबला, कबाला या कबलाह
यहूदी और ईसाई विश्वास में कबला का स्थान | कबला, कबाला या कबलाह (yahoodee aur eesaee vishvaas mein kabala ka sthaan | kabala, kabaala ya kabalaah)









कबला प्राचीन बेबीलॉन के समय से है, यद्यपि इसका प्रयोग मूल पुरातन परम्परा में समाया हुआ है, कबला-विज्ञान मानव जीवन से लगभग गुप्त ही रखा गया, जबकि यह लगभग चार हज़ार वर्ष से अधिक पहले प्रकट हो गया था ।

कबला-विज्ञान के रहस्य को आरम्भ से ही यहूदी परम्परा में गुप्त रखा, बहुत लोगों ने कबला समझने का प्रयास किया है। लेकिन आज भी कुछ ही को पता है कि कबला वास्तव में है क्या।

कबला को समझने के लिए हमें हिब्रू भाषा की वर्णमाला के 22 अक्षरों को भी समझना होगा।  क्योंकि यही वह भाषा है जिसे ईश्वरीय भाषा कहा जाता है जिसमें कोई भी अंक (नम्बर) नहीं होते हैं। हर एक अक्षर अपने में एक विशेष अंक की ऊर्जा समाए हुए है। मूसा की व्यवस्था को हिब्रू भाषा और उससे निकलने वाली ऊर्जा के बिना परिभाषित कर ही नहीं सकते थे।

इस विषय पर हम आगे आने वाले दिनों में कुछ प्रकाश अवश्य डालेंगे, अभी हम कबला विज्ञान पर चर्चा को जारी रखेंगे।

वास्तव में कबला आरम्भ में लिखित ज्ञान नहीं था बल्कि यह गुरु शिष्य परम्परा के माध्यम से एक दूसरे तक पहुंचाता था। कबला लिखित रूप में 12वीं शताब्दी में सामने आया।

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कबला का झूठ व जादू टोना से सम्बन्ध (kabala ka jhooth va jaadoo tona se sambandh)

वास्तव में किसी भी ज्ञान की सत्यता को जानने के लिए उस ज्ञान के विषय में प्रचार किए गए झूठ की सत्यता को जानना जरूरी है वह प्रचार किस मकसद से किया गया है।

कबला के विषय में लगभग पांचवीं सताब्दी से यानी कि जब से इस्लाम धर्म का उदय हुआ और प्रचार प्रसार शुरु हुआ तभी से यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और कबला विज्ञान के विरुद्ध दुष्प्रचार करना आरम्भ किया गया ताकि इस्लाम धर्म का विस्तार किया जा सके। क्योंकि उस समय तक यहूदी धर्म के साथ साथ ईसाई धर्म ने तेजी से अपना विस्तार किया और रोमन कैथोलिक चर्च अरब और पूरे यूरोप में फैल गया था।

इस्लाम धर्म को अपनी पहचान दिलाना आसान नहीं था इसलिए कबला विज्ञान को जादू टोना और ईसाई धर्म को मूर्ति पूजकों के रुप में प्रचारित किया गया और इस्लाम को एक ही परमेश्वर के उपासक के रूप में प्रचारित किया गया। अपने आप को आदम और इब्राहीम के सच्चे वारिस बनाकर प्रस्तुत किया गया।

आरम्भिक चर्च में कबला विज्ञान का विशेष स्थान था, इसी भ्रामक प्रचार के कारण कबला कुछ ही लोगों तक सीमित हो गया। इसके बाद यहूदियों के एक समूह द्वारा कबला के स्थान पर कबला से ही प्रेरित एक अन्य ग्रंथ की रचना हुई जिसे आज हम जोहर के नाम से जानते हैं, जोहर यहूदी धर्म का मुख्य धार्मिक ग्रंथ है। लेकिन कबला विज्ञान को भी यहूदी परम्परा से कभी अलग नहीं किया, जो रब्बी कबला विज्ञान पर शोध करते हैं। उन्हें कबालिस्ट कहा जाता है और यहूदी धर्म में आज तक उनका विशेष स्थान है ।

कबला एक ऐसा ज्ञान था जिसके द्वारा यहोवा परमेश्वर के द्वारा बनाई गई सृष्टि के रहस्यों और यहोवा परमेश्वर को समझने के लिए किया जाता था। 

ज़ोहर (यहूदियों की धार्मिक किताब) zohar (yahoodiyon kee dhaarmik kitaab)

ज़ोहर, टोरा (बाईबल की पहली पांच किताब) पर लिखित, रहस्यमय व गुप्त टिप्पणियों का एक संग्रह है, जिसे कबला की मजबूती माना जाता है। जो कि मध्ययुगीन अरामी और मध्ययुगीन हिब्रू में लिखे गए थे, ज़ोहर का मुख्य उद्देश्य कबालिस्टों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा में मार्गदर्शन प्रदान करना है, जिससे उन्हें यहोवा परमेश्वर के साथ जुड़ाव के उच्चतम से उच्चतम स्तरों को प्राप्त करने में मदद मिलती है। 

कबला हमारे इस संसार के विषय में बात नहीं करता है, इसलिए इसका मूल सार मनुष्यों के ध्यान से निकल जाता है। जो अदृश्य है, जो अलक्ष्य है और वह जिसे कभी अनुभव नहीं किया गया हो उसे समझना मनुष्य के लिए असम्भव है।

हज़ारों वर्षों से आज तक,” कबला” के नाम पर मानव जीवन को बड़ी और भयानक वस्तुएँ प्रदान की गईं थीं: जैसे माया, शाप और चमत्कार भी, और भी बहुत कुछ केवल कबला-विज्ञान को छोड़कर। यह चार हज़ार वर्ष से भी अधिक से, कबला-विज्ञान को भ्रांति और गलत अर्थ के साथ अस्त-व्यस्त और गलत तरीके से संसार में प्रचारित किया है। इसलिए हमें सबसे पहले, कबला-विज्ञान को स्पष्ट और सही तरीके से समझने की जरूरत है।

कबला वह रहस्यमय ज्ञान है जिसका सम्बन्ध सीधे इब्रानी भाषा और इब्रानी लोगों अर्थात यहूदी या इस्राइली धर्म के अनुयाइयों से जुड़ा है। अधिकांश मसीही लोगों को कबला के विषय में कोई ज्ञान नहीं है 

हमारे लिए यह जानना जरूरी है

हिब्रू भाषा से ही “कबाला” की निश्चयता का अनुवाद जो कि “दुनिया और मनुष्य के बारे में दिव्य ज्ञान” के रूप में किया गया है। प्राचीन यहूदियों की मान्यता थी कि हिब्रू वर्णमाला के सभी 22 अक्षरों में ब्रह्मांड के सभी रहस्य हैं।

कबला यहूदी धर्म से अस्तित्व में आया, और इसका रहस्यवाद से बहुत ही गहरा संबंध है। कबला के अनुसार दुनिया में सभी चीजें तीन रूप में हैं। 

  • (1) एनर्जी (ऊर्जा)
  • (2) फ्रीक्वेंसी (दोहराव ; बार-बार घटित होना) 
  • (3) वाइब्रेशन (कंपन)

 (1) एनर्जी (ऊर्जा),(2) फ्रीक्वेंसी (दोहराव ; बार-बार घटित होना),(3) वाइब्रेशन (कंपन)के रूप में मौजूद होती है। इस बारे में एक बार महान वैज्ञानिक निकोला टेस्ला ने भी बताया था। एनर्जी का यह रूप नीले ग्रह यानी पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व का प्राथमिक स्रोत है। इसी तरह, सभी इंसान, जानवर भी ऊर्जा से बने होते हैं। इसके अलावा जितने भी नाम होते है उसमें भी एक निश्चित अनुपात में एनर्जी समाई होती है।

कबला वास्तव में क्या है?  आध्यात्मिकता और विश्वास का अभ्यास (kabala vaastav mein kya hai?  aadhyaatmikata aur vishvaas ka abhyaas)

कबला  “रहस्यवाद” या “अंतर्ज्ञान – यहूदी परंपरा का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है जो यहोवा परमेश्वर के सार से संबंधित है। चाहे वह एक पवित्र पाठ हो, जीवन का अनुभव हो या अन्य कोई काम करते हो, कबालीवादी मानते हैं कि यहोवा परमेश्वर रहस्यमय तरीके से कार्य करते हैं।हालांकि, कबालीवादियों का यह भी मानना ​​है कि उस आंतरिक और रहस्यमय प्रक्रिया का सच्चा ज्ञान और समझ मनुष्य के प्राप्त करने योग्य है, और उस ज्ञान के माध्यम से, यहोवा परमेश्वर के साथ आध्यामिकता, विश्वास और अभ्यास द्वारा सम्बन्ध बनाया जा सकता है।

कबालीवादी विचार धारा (kabaaleevaadee vichaar dhaara)

कबालीवादी विचार धारा को अक्सर यहूदी रहस्यवाद माना जाता है। कबला का अभ्यास करने वाले सृष्टिकर्ता और सृजन को एक निरंतरता के रूप में ही देखते हैं, और वे यहोवा परमेश्वर के साथ अंतरंगता का अनुभव करने की तीव्र इच्छा रखते हैं।

यह इच्छा विशेष रूप से यहोवा परमेश्वर के साथ संबंधों की शक्तिशाली रहस्यमय भावना के कारण तीव्र है, कबालीवादियों का मानना ​​है कि परमेश्वर और मानवता के बीच एक रिश्ता आरम्भ से मौजूद है।

प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा के भीतर यहोवा परमेश्वर का एक छिपा हुआ हिस्सा (अंश) है, जो प्रकट होने की प्रतीक्षा कर रहा है। लेकिन कुछ रहस्यवादी जो यहोवा परमेश्वर और मनुष्य के बीच ऐसे संबंध का साहस के साथ वर्णन करने से इनकार करते या घबराते हैं, फिर भी यहोवा परमेश्वर और इस ब्रह्मांड के बीच के भेदों को भेदते हुए संपूर्ण सृष्टि को ईश्वरत्व में समाया हुआ पाते हैं। 

प्रसिद्ध कबालीवादी मूसा कॉर्डोवर लिखते हैं, “हर एक चीज़ में ईश्वरत्व का सार समाया हुआ है, लेकिन यह प्रत्यक्ष रुप में नहीं है … फिर भी यह प्रत्येक अस्तित्व में मौजूद है।”  

रेव्ह. बिन्नी जॉन “शास्त्री जी” (धर्मशास्त्री, अंकशास्त्री)

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